यदि maid भी न रखे, केवल आजीविका कमायें, तब भी आप सैकड़ों, हज़ारों, लाखों लोगों को रोज़गार देते है।
एक किसान है, कहता है अपनी कोई उपज बाज़ार में नहीं बेचेगा। वामपंथी का चेला हो गया है व इसलिए बाज़ार शब्द से ही घृणा है उसे।
तो हल तो चलाएगा। हल बनाने वाले को काम देगा। हल भी ख़ुद ही बना रहा है तो उसके फाल को लूहार से लेगा ही। फाल भी स्वयं बना रहा है तो लोहा तो ख़रीदेगा ही। या लोह खनिज की खान भी है व लोहा भी स्वयं बना रहा है? दस साल में एक बार फाल बनाने के लिए खान व भट्टी रखना? उसकी मर्ज़ी। फिर तो वो Sentinelese हो गया। वे तो जंगल में रहते है व भारतीय नौ सेना द्वारा रक्षित है। भाग्यशाली है कि भारत में है।
तो Sentinelese के अतिरिक्त कोई भी अन्य मनुष्य जब अपने लिए काम करता है तो दस लोगों के लिए रोज़गार भी पैदा करता है। जैसे कोई अगर घर पर ही लेकिन बेचने के लिए जुते बनाता है तो सुये वाले के लिए, धागे वाले के लिए, Anvil वाले के लिए काम पैदा करता है।
यही अर्थव्यवस्था होती है। जो भी मनुष्य अपनी आजीविका कमाने के लिए काम करता है वह दुनिया के किसी अन्य भाग में उस मनुष्य के लिए काम पैदा करता है जिससे वह कभी मिला नहीं। दूध का व्यापार करने वाला व्यक्ति भेंस पालने वाले के लिए काम पैदा करता है।
और इस जाल में जो जितना सम्पन्न है वह उतने ही अधिक लोगों के लिए रोज़गार पैदा करता है। ब्यूटी पार्लर के कर्मचारी को सम्पन्न महिलाये ही रोज़गार दे सकती है।
और मुफ़्तखोर?
मुफ़्तखोर वामपंथी के अतिरिक्त अन्य किसी को रोज़गार नहीं देता। वह तो आपकी बचत भी खाता है उलटे। बचत न हो तो आपकी आय कभी बढ़ नहीं सकती। अतः मुफ़्तखोर आपको उसी स्तर पर रखेगा जहाँ है। बल्कि मुफ़्तखोर संख्या में बढ़ने लगते है, इसलिए आप उलटे ग़रीब होने लगते है।
अतः आप यदि maid भी न रखे, केवल आजीविका कमायें, तब भी आप सैकड़ों, हज़ारों, लाखों लोगों को रोज़गार देते है।