हमारे सनातन में कहा जाता है कि ऐसा कुछ भी नही है जिसकी आप कल्पना करें और वो हो न चुका हो।
हमारे सनातन में कहा जाता है कि ऐसा कुछ भी नही है जिसकी आप कल्पना करें और वो हो न चुका हो।
तुलसी बाबा ने भी मानस में बताया है कि राम जी लक्ष्मण को ये बात समझाते हुए कहते हैं कि हमारी कोई भी कल्पना ऐसी नही है जो अस्तित्व में न आ चुकी हो। उसका अस्तित्व कहीं न कहीं होगा, किसी और लोक में, किसी और आयाम में, किसी और युग में, किसी और समय में, किसी और कल्प आदि में वह मूर्त रूप में अवश्य ही आ चुकी है।
हमारे सनातन में यह भी कहा जाता है कि हम सबकी चेतनाएँ एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि हर आत्मा परमात्मा का एक अंश है। मतलब सबकी चेतनाओं का अपना एक अस्तित्व तो है लेकिन विस्तृत रूप में ये सभी चेतनाएँ एक दूसरे से जुड़ी हैं। इस कॉम्बिनेशन को सामूहिक चेतना कहा जाता है। इसका एक उत्कृष्ठ उदाहरण है सामूहिक प्रार्थना। लगभग हर धर्म में सामूहिक रूप से की गयी प्रार्थना पर जोर दिया गया है। दूसरे धर्मों का तो पता नही लेकिन सनातन में इसके प्रभावों पर विस्तृत चर्चा हुई है और ऐसा सिद्ध हुआ है कि सामूहिक यज्ञ, प्रार्थना या उपासना और मंत्रोच्चारण के बहुत बड़े प्रभाव दिखाई दिये हैं।
खैर, बात का विषय अलग हो गया, तो मुख्य बात यह है कि हमारी चेतनाएँ आपस में जुड़ी हैं।
अब इन दोनो वक्तव्यों को ध्यान में रखते हुए बात करेंगे “कौंध” की।
क्या होती है कौंध?
कौंध मतलब अचानक ही किसी विचार का आपके मस्तिष्क में आ जाना, जबकि पहले कभी आपका उस विषय से कोई वास्ता ही नही था। अचानक ही किसी समस्या का समाधान मिल जाना, जिसके लिए आप काफी समय से परेशान थे और आपको समाधान ही नही मिल रहा था।
ऐसा होना कि अचानक ही कोई ऐसा विचार आपके दिमाग में कौंध जाए, जिसका आपसे कोई वास्ता ही न हो।
जैसे कि माइकल फैराडे, जिन्होंने विद्युत चुम्बकीय प्रेरण, प्रति चुम्बकत्व आदि के विषय में अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। खुद फैराडे ने माना है कि पहले तो वे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम आदि लिखने/ प्रतिपादित करने में लगातार असफल हो रहे थे फिर उन्हे अचानक से ही ये विचार कौंध गए।
जैसे कि मारकोनी और जे सी बोस को लगभग एक ही समय पर टेलीग्राफ बनाने का विचार कौंधा, जबकि दोनो को ही एक दूसरे के इस शोध के विषय में पता नही था। हाँ ये अलग बात है कि भारत के पराधीन होने के कारण बोस को इसका श्रेय नही मिला।
जैसे कि जेम्स वॉटसन को डी एन ए की डबल हेलिक्स स्पाइरल संरचना सपने में दिखी थी।
जैसे कि दिमित्री मांडेले को आवर्त सारणी की कौंध नींद में ही आई थी।
ऐसे कई उदाहरण हैं, लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि क्या सामूहिक चेतना का हिस्सा होने के कारण ऐसे विचार उन चेतनाओं से, जहाँ ये मूर्त रूप में आ चुके हैं, उन चेतनाओं में ट्रांसफर हो जाते हैं, जहाँ ये अभी भी कल्पना ही हैं?
अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो क्लासिकल फ़िजिक्स के नियमों के हिसाब से ये असंभव था। लेकिन क्वांटम भौतिकी में यह संभव है।
क्वांटम भौतिकी में यह सिद्ध हो चुका है कि आपस में जड़े क्वांटम कणों के बीच सूचना का आदान प्रदान होगा ही होगा, भले ही उन कणों के बीच कितनी भी दूरी हो, और ताज्जुब की बात है कि सूचनाओं के आदान प्रदान में कोई समय भी नही लगेगा। मतलब यहाँ सूचना प्रकाश के वेग से भी अधिक गति से चलती है। कई मामलों में प्रकाश के वेग से दस हजार गुना अधिक गति से भी। इसे क्वांटम उलझाव या क्वांटम इंटैंगलमेंट भी कहा जाता है। (बहुत विस्तृत विषय है, बहुत बेसिक तरह से बताया है)।
इसका अर्थ यह है कि किसी और आकाशगंगा की किसी अत्याधुनिक सभ्यता की किसी चेतना से कोई विचार हमारी मानव सभ्यता को स्थानांतरित हो सकता है।
इसके अलावा जिस गति की बात की गयी है उस गति से तो समय यात्रा भी बहुत सरलता से की जा सकती है, तो वह विचार किसी और समय से भी आ सकता है या फिर किसी और ब्रह्मांड से भी।
तो अगर अगली बार आपको अपनी किसी ऐसी समस्या का हल अचानक ही मिल जाए, जिसे आप बहुत समय से खोज रहे हों, या फिर किसी ऐसे विषय पर आपके दिमाग में कोई बढ़िया विचार कौंध जाए, जिस विषय पर आपका ज्ञान शून्य हो, या उस विषय से आपका कोई लेना देना ही न हो, तो यह समझियेगा कि किसी और काल, ग्रह, युग, कल्प, आकाशगंगा या ब्रह्मांड से किसी चेतना ने आपको वह विचार भेजकर आपकी समस्या हल कर दी है।
क्योंकि ऐसा कुछ भी नही है, जिसकी हम कल्पना करें और वह हो न चुका हो।