किसी नर पशु का तुलसी पर कीचड़ उछालना उनका प्रताप कम नहीं कर सकता

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  • Post category:Sanatan
  • Post last modified:January 16, 2023
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अकबर का कालखंड वो काल था जब सारा देश कहीं न कहीं उन आक्रांताओं के अत्याचारों से संतप्त था। एक बड़ी आबादी को या तो मतांतरित करवा लिया गया था या फिर जो बचे थे वो उस व्यवस्था में ही एडजस्ट होने का मन बनाने लगे थे क्यूंकि हिंदू सूर्य महाराणा प्रताप जैसे कुछ पुरुषों को छोड़ दें तो अधिकतर उस मुगलासुर के समक्ष प्रतिकार का सामर्थ्य नहीं रखते थे।ऐसे में भक्ति भाव का जागरण ही वो तरीका था जो हिंदू समाज को संजीवनी दे सकता था। हिन्दू समाज स्वराज्य स्थापन भाव के साथ पुनः समग्र रूप से उठकर खड़ा हो सकता है इसकी किसी को कल्पना तक नहीं थी।ऐसे में प्राकट्य होता है #तुलसी का जिन्होंने जननी-जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर बताने वाले, उत्तर और दक्षिण भारत को एक सूत्र में आबद्ध करने वाले, नगरवासी और वनवासी को एक समान समझते हुए समता और ममता का बोध कराने वाले, नारी सम्मान के रक्षक और गाय की रक्षा के लिए मनुज रूप धारण करने वाले प्रभु श्रीराम को हिंदू समाज के त्राटक रूप में स्थापित करने का निश्चय किया क्योंकि गुलामी के लंबे कालखंड में हिन्दू समाज अपने राम के पौरुष को धारण करना भूल गया था।तुलसी ने जन भाषा में काव्य रचा ताकि ये हरेक तक पहुंच जाए और ये काव्य तब लिखा जिस समय फेसबुक नहीं था, व्हाट्सएप और ट्वीटर नहीं थे, न ई-मेल भेजे जा सकते थे और तो और बाबा के मानस का कहीं कोई विमोचन भी नहीं हुआ पर चमत्कारिक रूप से श्रीरामचरितमानस हर हिन्दू घर में पहुँच गया। ये प्रभु श्रीराम का पुण्य प्रताप और तुलसी की दूरदर्शिता ही थी।आज किसी किताब की पीडीएफ सेकेंडों में कहीं भी भेजी जा सकती है। डाक और कोरियर व्यवस्था के चलते कुछ ही दिनों में किताब देश विदेश कहीं भी भेजी जा सकती है पर कोई और किताब मानस की पहुँच का सहस्त्रांश भी ख्याति अर्जित नहीं कर सका।मानस की चौपाइयें ऐसी कि कथित अनपढ़ और बड़े-बड़े विद्वान तक उसकी व्याख्या कर सकते थे। हर हिन्दू घर में नारी प्रातः उठकर मानस का पाठ करके ही भोजन ग्रहण करतीं थीं।ऐसा था तुलसीदास रचित “रामचरितमानस” का प्रताप। उसने ऐसा भाव जाग्रत किया कि जब हिन्दू मजदूरों की एक टोली गुलाम रूप में मॉरीशस पहुँची तो उनके पास धार्मिक प्रतीक के रूप में बस तुलसी की रामचरितमानस थी। उन लोगों ने केवल उसी के सहारे स्वयं को हिन्दू रूप में न केवल जीवित रखा बल्कि मॉरीशस में गुलाम से शासक तक का भी सफ़र तय किया। इसलिए कभी हम हिंदुओं से अगर कोई हमारा सब कुछ छीन भी लेगा तो भी केवल राम और रामकथा के दम पर हम पुनः अपने अस्तित्व को दुनिया के सामने पूरी प्रखरता से प्रकट कर देंगे। तुलसी का मानस वही है- समता, ममता और एकात्मता का घोषित चार्टर……..किसी नर पशु का तुलसी पर कीचड़ उछालना उनका प्रताप कम नहीं कर सकता।