पाँव पाटल में बसे प्राणों की अनुभूति करिये

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  • Post last modified:March 14, 2023
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ओस से भीगे कच्चे रास्ते पर धीरे धीरे चलिए, मिट्टी की शीतलता आपके तलुए से होकर शिराओं से होती हुई मस्तिष्क तक पहुँचेगी। यदि आपकी संवेदन ग्रन्थियाँ जागृत हैं तो आपको अनुभव होगा कि एक एक अवयव की प्रत्येक कोशिका में शीतल पिंड दोलन करने लगा है। यह केवल स्पर्श नही है, मिट्टी की भाषा है उसे पढिये, वह अपना स्नेह ज्ञापित कर रही है।

ठंडियों में ताप पिंड को शरीर मे वितरित करने का कार्य भी पाँव का होता है।

आल्हखण्ड में वीर योद्धा मलखान की कथा आती है जिसके प्राण उसके तलवे में थे, यह बात आल्हा के मामा माहिल को पता थी और उसने पृथ्वीराज चौहान को बताई ताकि उसके पैरों में बरछी चुभो कर मलखान के प्राण लिए जा सकें। मैं कई बार सोचता हूँ और इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि हमारे पैरों में प्राण घनीभूत होकर अवस्थित हैं। शायद यही वजह है कि प्राणों को स्पर्श करने के उद्देश्य से चरण स्पर्श के विधान बने। हम जानते हैं कि ऊर्जा का प्रवाह संपीडन से विरलन की ओर होता है। यदि हम किसी महाप्राण के पैर छूते हैं तो ऊर्जा प्रवाह का वर्तुल सक्रिय हो उठता है।

प्राण के सौंदर्य को पहचानना ही प्रकृति के सौंदर्य से परिचित होना है। महावर से सजे पाँव भोर की लाली से सजी धरती के जैसे होते हैं, जहाँ जहाँ पड़ते हैं वह जगह सजीव हो उठती है। यह जगजाहिर है कि पुरुष की तुलना में स्त्री ज्यादा प्राणशक्ति से युक्त होती है, सर्जन की क्षमता अधिक है, अधिक प्राकृतिक है, इसलिए उनके पैर शृंगार के लिए तुलनात्मक रूप से ज्यादा अधिकृत होते हैं। विवाह के उपरांत स्त्री अपने पैर से कलश स्पर्श कर घर को प्राणयुक्त बनाती है। महावर लगी स्त्रियाँ धरती को बंजर होने से बचा लेती हैं, घर के सौभाग्य को अक्षुण्य रखती हैं।

महाभारत में भगवान कृष्ण पैर धोने का काम करते हैं। जो चरण सबकी सेवा करता है भगवान उसकी सेवा करते हैं। संसार के किसी ग्रन्थ में शायद ही ईश्वर द्वारा किसी के चरण धोने का उल्लेख मिले पर हमारे यहाँ वह प्राणों के ऊपर जमे सांसारिक कलुष को धोते हैं। सूरदास कह उठते हैं,

‘चरण कमल बंदौ हरि राई’

पाँव पाटल में बसे प्राणों की अनुभूति करिये, जीवन मे रंग, ताप, गंध, सुर और रस के घुंघरू खनखनाने लगेंगे।