यदि हिन्दू धर्म, चार स्तम्भों : धर्म , अर्थ, काम व मोक्ष पर आधारित है तो धर्म निरपेक्षता सामाजिक रूप से राष्ट्रद्रोह है तथा व्यक्तिगत रूप से सबसे बड़ा अधर्म है ।
पूरी गीता में श्री कृष्ण अर्जुन को धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं ।
किस राक्षसी बुद्धि ने यह शब्द , ‘धर्म निरपेक्ष’ हमारे जीवन में स्थापित किया ?
धर्म निरपेक्षता केवल हिंसा , अत्याचार व अराजकता की स्थापना कर सकती है ।
सत्य , न्याय , करुणा , विज्ञान , व प्रेम केवल धर्मनिष्ठ समाज में स्थापित हो सकते हैं, धर्म निरपेक्ष राज्य में नहीं ।
धर्म निरपेक्ष राज्य केवल असत्य , अन्याय , अज्ञान व घृणा को जन्म देता है क्यूँकि धर्म ही वह तत्व है जो मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाता है । धर्म यदि सत्ता व समाज से निरपेक्ष रहेगा तो हिंसा व लूट का नग्न नाच होगा । धर्म निरपेक्ष न्याय व्यवस्था किन मापदंडों पर न्याय कर सकेगी ?
भारत एक हिन्दू राष्ट्र है तथा औपचारिक रुप से इसे हिन्दू राष्ट्र बनाना ही हर हिन्दू का ध्येय होना चाहिए ।
इसके अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है हमारे पास ।
जय हिन्दू राष्ट्र !