संपन्नता की एक अलग arrogance होती है। संपन्न वर्ग सोचता है कि समाज की पैथोलॉजीज़ – राहजनी, चोरी चकारी, बाजार में घर की महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, इत्यादि- उन तक नहीं पहुंचेगी। उनके घर के एरिया, वे स्थान जहाँ वे आउटिंग, शॉपिंग इत्यादि के लिए जाते है इन सबसे अछूते रहेंगे।
रहते भी है जब तक ये पैथोलॉजीज़ एक स्तर से कम होती है।
ब्लू स्टीवन एक छब्बीस वर्षीय युवा था इंग्लैंड में। ख़ानदानी बहुत संपन्न परिवार से था। परिवार में मुक्केबाजी की भी परम्परा थी। दादाजी ओलंपिक मुक्केबाजी में कांस्य जीते थे।

पिछले सप्ताह ब्लू जी लंदन के एक सबसे महंगे पाँच सितारा होटल से पत्नी संग खाना खाकर निकले । और अपनी बीएमडब्लू की ओर बढ़े। एक मुयलमान ने उनसे उनकी सोने की घड़ी माँगी। उन्होंने नहीं दी व उल्टे मुक्केबाजी की स्किल को प्रयोग किया। मुयलमान ने चाकू घोंपकर ब्लू जी को मार डाला।
पैथोलॉजीज़ तो हर समाज में होती है व सदैव रहेंगी। हिंदू जैसे समाज में क्यूंकि परिवार, कुटुंब व धर्म पैथोलॉजीज़ को नियंत्रित करने का प्रयास करते है तो ये कम होती है। अधिकतर लोग सुरक्षित रहते है।
इलसाम पैथोलॉजीज़ से ही जन्मा था तो उन्हें सेलिब्रेट करता है बढ़ावा देता है। इसलिए हर मुयलमान पोटेंशियल चाकूबाज है। ये जहाँ होते है वहाँ कोई सुरक्षित नहीं रहते है।
जब मुयलमानों को इंग्लैंड आने से रोकना था तो ब्लू जी के दादाजी ओलंपिक में व्यस्त थे।
सत्य यही है कि समाज को भी प्रतिदिन मेंटेनेंस की आवश्यकता होती है। समाज के संपन्न व शिक्षित लोग ही इतने साधन रखते है कि ये सब देख सके और कर सके। हम हिंदुओं के संपन्न व शिक्षित तो लेकिन लंदन भागने की जुगत में है।
भागिए। वहाँ भी भाईजान चाकू लिए प्रतीक्षा कर रहा है।