सम्भावामि युगे युगे

सम्भवामि युगे युगे… अधर्म जैसे अपने चरम पर पहुँच चुका था। मथुरा में बैठा कंस स्वयं को ईश्वर बताता था, तो उधर मगध नरेश जरासंध भी ईश्वरत्व का दर्प लिए…

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आप बस हिंदू के त्योहार, हिंदुओं द्वारा, व हिंदूओ के लिए ही होंगे, ये नियम बना ले। आप किसी भी दुश्मन को हरा देंगे।

देवबंद में, सउदी अरब में, अल अज़हर में शोध होते रहते है कि हिंदू बच कैसे गए चौदह सौ साल के बाद भी। उनके निष्कर्ष तो इलसाम के विरुद्ध नहीं…

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ये मानस को जलाने वाले

भारत में अस्पृश्यता पर, छुआछूत पर, भेदभाव पर और ऐसी मानसिकता वाले लोगों पर सबसे अधिक चोट अगर किसी ने की तो वो महर्षि दयानंद सरस्वती और उनकी पुस्तक सत्यार्थ…

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