कुरान क्या कहता है?
आयत 21.30 में अल्लाह कहता है कि पहले आसमान और धरती एक ही थे उसने आसमान को ऊपर उठा दिया। आयत 21.32 में अल्लाह कहता है कि ऐसा इसलिए किया ताकि धरती को छत मिले। फिर आयत 22.65 में अल्लाह कहता है कि उसने ही आसमान को ऊपर थामा हुआ है नहीं तो आसमान धरती पर गिर जाएगा।
अब हम जानते है कि ऊपर कोई छत इत्यादि नहीं है। वायुमंडल है जो नीला दिखता है प्रकाश के scatter होने के कारण। अन्यथा पृथ्वी गोल है और हर दिशा में अनंत तक कोई छत नहीं है।
तो क्या मुसलमानों ने क़ुरान को manmade मान लिया है? याने सब झूठ है ये मान लिया है। जी नहीं। मुसलमान इसे तीन तरह से डील करते है:
१. क़ुरान सच है और विज्ञान झूठ है।
२. अल्लाह ने उस समय ये सब नहीं बताया था क्यूँकि उस समय के लोग समझ नहीं पाते।
३. ये अल्लाह coded भाषा में big bang की ही बात कर रहा है।

जो व्यक्ति किसी विचार को सच मान लेता है उसे कोई तथ्य, कोई प्रमाण, कोई तर्क डिगा नहीं सकता है। वो तथ्य को नकार देगा, प्रमाण को झूठ बोल देगा, तर्क करने वाले का सिर तन से जुदा कर देगा।
जिसके पास बल/पैसा होता है उसका विचार चलता है
किसी भी मजहब को सत्य या असत्य सिद्ध कर पाना संभव नहीं है। इस पर समय व्यर्थ ना करे। जिसके पास बल/पैसा होता है उसका विचार चलता है दुनिया में।
उदाहरण के लिए, ईसाईयत कहती है कि जीसस भगवान का पुत्र था, उसे सूली पर लटकाया गया था, व तीन दिन बाद वह जीवित हो गया था। क़ुरान कहती है कि जीसस भगवान का पुत्र नहीं था, व ना ही उसे सूली पर लटकाया गया था।
याने ईसाइयत व इस्लाम दोनों में से कोई एक तो definitely, beyond all doubts, झूठ है। दोनों सत्य नहीं हो सकते। फिर भी ईसाइयत को 2.2 बिलियन लोग सत्य मानते है और इस्लाम को 1.8 बिलियन लोग सत्य मानते है। याने या तो 2.2 बिलियन लोग झूठ जी रहे है या 1.8 बिलियन लोग झूठ जी रहे है या दोनों ही झूठ जी रहे है। कोई हिंदू सार्वजनिक मंच से इस एकदम तार्किक बात को कह भी पाया आजतक? ईसाइयत व इस्लाम दोनों में से कोई एक को तो हारना पड़ेगा?
तो दुनिया में उसी का विचार चलता है जिसके पास पैसा/बल होता है। अगर हिंदू फिर भी शास्त्रार्थ का मंच सजाए बैठे है तो दोष किसका है