अर्थशास्त्र का हर व्यक्ति को न पढ़ाया जाना इस विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी है, ट्रैजडी है

  • Post author:
  • Post category:Economics
  • Post last modified:January 16, 2023
  • Reading time:3 mins read

We all are enjoying the misery, we all economic illiterates, आर्थिक अँगूठाछाप, and watching life of our own and our children destroyed.


असेम्ब्ली लाइन सिस्टम माना जाता है कि हेनरी फ़ोर्ड ने पहली बार कार के कारख़ाने में प्रयोग किया, और कार उत्पादन में क्रांति ला दी।

ऊपर लिखे वाक्य में एक ही ग़लत तथ्य है: पहली बार।

असेम्ब्ली लाइन सिस्टम ना फ़ोर्ड ने बनाया, ना पहली बार उसने प्रयोग किया। हाँ, उसने कार के कारख़ाने में इसकी efficiency-दक्षता अवश्य बढ़ाईं।

अन्यथा, पूरी अर्थव्यवस्था एक असेम्ब्ली लाइन ही है।

अर्थशास्त्र का हर व्यक्ति को न पढ़ाया जाना इस विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी है, ट्रैजडी है।

लोगों को, पढ़े लिखे लोगो को, PhD किए हुए लोगों को, भी ये पता नहीं है कि भौतिक व रासायनिक व जैविक रूप से बिलकुल समान होते हुए भी दो वस्तुयें एक ही economic good “आर्थिक उत्पाद” हो ये अवश्य नहीं होता।

उदाहरण के तौर पर, आपकी रसोई की टोकरी में रखा आलू व किसान के खेत में अभी अभी पैदावार के रूप में रखा आलू एक ही economic good, समान आर्थिक वस्तु नहीं है। आपके किसी काम का नहीं है खेत में रखा आलू।

किसान को उसे पास की मण्डी में लाना होगा, मण्डी में किसी को ख़रीद कर उसे आपके शहर की मण्डी में लाना होगा, वहाँ से किसी को ख़रीद कर उसे आपके पड़ोस की दुकान पर लाना होगा, फिर आपके घर से कोई जाकर उसे ख़रीद कर लाकर आपकी रसोई की टोकरी में रखेगा, तब वो उसमें रखे आलू के समान मूल्य का आलू, same एकनामिक गुड बनेगा।

तो किसान चाहे माने के उसने आलू पैदा किया है, लेकिन उस आलू को आपके लिए आलू बनने के लिए एक असेम्ब्ली लाइन से गुजरना पड़ता है, जिसमें निम्नलिखित Capital goods का योगदान आवश्यक होता है (Capital goods उन्हें कहा जाता है जो consumption goods पैदा करते है।)

१. किसान की बैल गाड़ी।

२. सड़क।

३. मण्डी।

४. ट्रक।

५. शहर की मण्डी।

६. छोटा ट्रक।

७. पास की दुकान।

निम्न लोगों का श्रम, पैदावार के बाद भी:

१. किसान स्वयं , बैलगाड़ी के लिए।

२. मण्डी के कर्मी व व्यापारी।

३. ट्रक का ड्राइवर व क्लीनर।

४. शहर की मण्डी के कर्मी व व्यापारी।

५. शहर के छोटे ट्रक का ड्राइवर।

६. पड़ोस का दुकानदार।

७. आप स्वयं।

ऊपर लिखे कैपिटल गुड्ज़ व श्रम के योगदान के बाद खेत में पैदा हुआ आलू आपके उपयोग के लिए तैयार हो पाता है।

इसमें से सड़क ऐसा कैपिटल गुड है जो कोई एक एकनामिक एजेंट नहीं बना सकता, इसलिए आवश्यक है कि सरकार बनाए।

बाक़ी सभी ऐसे है कि कोई भी थोड़ी बचत कर बना सकता है। किसान सीधे आपके घर आलू लेकर आ सकता है लेकिन उसके लिए एक ट्रक चाहिए होगा, व उतने समय के लिए किसान अपने खेत व घर के काम करने के लिए उपलब्ध नहीं होगा।

या उसे क़ानून द्वारा रोका जा सकता है।

यहाँ पर आते है vested interests छिपे हुए समूह जो सरकार को प्रयोग करते है competition को kill करने के लिए। किसी को नहीं पता कि ऊपर लिखी प्रक्रिया में किस को क्या वेतन/ लाभ मिलना चाहिए: आलू का क्या भाव होना चाहिए, व्यापारी का क्या लाभ होना चाहिए, ट्रक ड्राइवर का क्या वेतन होना चाहिए, ट्रक मालिक का क्या लाभ होना चाहिए। किसी को नहीं पता। किसी को भी। अगर किसी को भी बल प्रयोग की छूट ना हो, या क़ानून का सहारा न हो तो अपने आप सब का हिस्सा तय कर देंगे आप-जिसकी रसोई में आलू आना है। अगर किसान को नुक़सान लगा तो वो आलू नहीं बोएगा, अगर व्यापारी को नुक़सान लगा तो वो आलू का व्यापार नहीं करेंगा। ट्रक मालिक को नुक़सान हुआ तो वो ट्रक खड़ा कर देगा, ड्राइवर को वेतन कम लगा तो वो कुछ और कर लेगा, और आप को आलू महँगा लगा तो आप प्याज की सब्ज़ी खा लेंगे।

सरकार का एक और रोल है: कोई लूटे नहीं, चुराए नहीं ऊपर लिखी प्रकिया में। लूट या चोरी हुई तो आलू आप तक नहीं पहुँचेगा, या चोर से महँगा ख़रीदना पड़ेगा, या निजी सुरक्षा का ख़र्च भी आपको देना होगा। या किसान आलू पैदा ही करना बंद करने को विवश हो जाएगा।

ऊपर लिखे किसी भी एकनामिक एजेंट के पास सरकार को झुकाने की ताक़त होगी तो वो झुका कर एक बार कुछ ज़्यादा कमा लेगा, लेकिन आप या तो आलू कम ख़रीदेंगे, या ख़रीदेंगे ही नहीं, और थोड़े समय बाद सभी की कमाई भी बंद हो जाएगी व रोज़गार भी समाप्त हो जाएँगे। सरकार अर्थव्यवस्था में बल प्रयोग करे या करने दे तो ऐसे ही विनाश होता है।

सरकार ये भी कर सकती है कि कैपिटल इन्वेस्ट ना करे: सड़क ना बनाए, मण्डी ना बनने दे, सक्षम पुलिस व न्यायालय न रखे, व बचे पैसे से आपको या किसान को या व्यापारी को सब्सिडी देकर चुनाव जीत ले। लेकिन उससे आपकी अर्थव्यवस्था की दक्षता कम हो जाएगी, inefficient हो जाएगी आपकी असेम्ब्ली लाइन: आलू आप तक कम आएगा, महँगा आएगा। अगर बल प्रयोग ना हो, निजी या क़ानून द्वारा, तो अगर किसी को भी ज़्यादा लाभ हुआ तो तुरंत कोई कम लाभ में काम करने वाला competitor आ जाएगा।

आसान है ना समझना!

तो फिर कोई समझाता क्यूँ नहीं?

वामपंथी समझाएगा नहीं, क्यूँकि उसे आप सब की ग़रीबी से सत्ता मिलती है, स्वयं उसे भी पता नहीं, वरना वामपंथी ना होता। दक्षिणपंथी को ना तो पता है, और ऊपर से वो पैसे को समस्त बुराइयों की जड़ भी मानता है। अर्थशास्त्री को नौकरी से फ़ुर्सत नहीं, व उसकी आप सुनेंगे भी नहीं।

मेरी भी कहाँ सुनते है आप।

We all are enjoying the misery, we all economic illiterates, आर्थिक अँगूठाछाप, and watching life of our own and our children destroyed.

किसान भी इसीलिए सड़कें रोके बैठे है, तोड़फोड़ कर रहे है, क्यूँकि उन्हें भी ये सब पता नहीं, ना किसी ने बताया।