न्याय का दोहरा चरित्र

सीजेआई के भगवान विष्णु पर बिगड़े बोल

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की भगवान विष्णु को लेकर एक टिप्पणी ने देश भर में आक्रोश पैदा कर दिया है. बौद्ध धर्म के अनुयायी जस्टिस गवई को हर वर्ग, जाति और राज्य के लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. 16 सितंबर 2025 को याचिकाकर्ता राकेश दलाल की मध्य प्रदेश के खजुराहो के वामन (जवारी) मंदिर में 7 फीट ऊंची भगवान विष्णु की मूर्ति बदलने की याचिका को खारिज करते समय गवई ने अनावश्यक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा, ”जाओ और भगवान से खुद करने को कहो. तुम कहते हो भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हो, जाओ उनसे प्रार्थना करो.” जिसके बाद सोशल मीडिया पर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का अनादर करने पर उनसे माफी मांगने के लिए कहा जा रहा है. हालांकि, माफी के बजाए गवई ने इसे सोशल मीडिया पर अपने खिलाफ फैलाया गया एक झूठ बताया है. लेकिन उनका बयान हिंदू धर्म के खिलाफ उनकी खीज को साफ ज़ाहिर करता है.

सुप्रीम कोर्ट के वकील विनीत जिंदल ने पत्र लिखकर चीफ जस्टिस से हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपना बयान वापस लेने के लेने का अनुरोध किया. उन्होंने अपने पत्र में लिखा, “यद्यपि माननीय न्यायालय के पास किसी भी याचिका पर विचार न करने का पूरा अधिकार है, फिर भी उसे अपने अधिकार का इस प्रकार प्रयोग करना चाहिए कि इससे किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे और हमारे संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का हनन न हो. इन टिप्पणियों से लाखों हिंदू श्रद्धालुओं को अत्यधिक ठेस और पीड़ा पहुंची है.”

विष्णु को समर्पित खजुराहों का जवारी मंदिर भारत के महत्वपूर्ण और अनूठे मंदिरों में से एक है. जिसका निर्माण चंदेला राजाओं ने 1075-1100 ईस्वी में कराया था. यहां भगवान विष्णु के सभी अवतारों को दिखाया गया है. मंदिर अपनी अनोखी बनावट और कलात्मक खूबसूरती के लिए जाना जाता है. मंदिर के गर्भगृह के बाहर खड़े होकर देखने पर लगता है कि यहां पानी भरा है, लेकिन वहां सिर्फ पत्थर बिछा हुआ है. इसे बनाने में 20-25 सालों का समय लगा था. मंदिर का अलंकरण बेहद खुबसूरत और आकर्षक है.

खजुराहों के अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर की बाहरी दिवारों पर भगवान विषणु, शिव, नंदी, देवी और अन्य देवी-देवताओं की बेहद बारीकी से उकेरी गई मूर्ति दिखाई देंती. प्रेम, नृत्य, कला, काम, और भारत की सभ्यता सहित मनुष्य जीवन के कई प्रकार के भावों को मूर्तियों में झलकतें हुए देखा जा सकता है.      

अपनी वास्तुकला के कारण खजुराहो के इस मंदिर को 1986 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया. यह मंदिर भारत की प्राचीन स्थापत्य कला की एक अनूठी झलक प्रस्तुत करता है. चंदेला कारीगरों ने इस मंदिर को बनाने में अपने कौशल और रचनात्मकता का प्रमाण दिया है. इसका उठा हुआ मंच और विशाल शिखर इसे और आकर्षक बनाते हैं. मंदिर का एक मुख्य आकर्षण इसका अलंकृत मकर-तोरण है, जो जटिल विवरणों से सुसज्जित एक सुंदर नक्काशीदार प्रवेश द्वार है.

वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाला यह मंदिर एक चमत्कार और भारत का सांस्कृतिक खजाना है. मूर्तियां इतनी जीवंत नज़र आती हैं, मानो बोल पडेंगी. यहां गर्भगृह में रखी भगवान विष्णु की मूर्ति मुगलों के आक्रमणों के दौरान खंडित हो गई थी. मूर्ति का सिर्फ गरदन से नीचे का हिस्सा ही सालों से यहां रखा हुआ है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी भी खंडित मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है. खंडित होने की वजह से ही इसकी पूजा नहीं की जा सकती. मूलतः हरियाणा के रहने वाले और राष्ट्रीय वीर किसान मजदूर संघ दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश दलाल  ने मंदिर की अंतरराष्ट्रीय पहचान और सांस्कृतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में मूर्ति का पुनर्निर्माण करने के लिए 13 जून को जनहित याचिका दायर की थी. जिसकी सुनवाई करते समय बीते मंगलवार 16 सितंबर को चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने इसे खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, “जाओ और भगवान से खुद करने को कहो. तुम कहते हो भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हो, जाओ उनसे प्रार्थना करो. यह एक पुरातात्विक स्थल है और एएसआई को अनुमति देनी होगी.” इस टिप्पणी के बाद देश भर के लोगों ने सोशल मीडिया पर गवई का जमकर विरोध किया.

दैनिक भास्कर की वैबसाइट पर इस मामले पर छपि एक खबर के अनुसार राकेश दलाल खजुराहो के साथ-साथ देश के अन्य ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों पर खंडित देवी-देवताओं की मूर्तियों को ठीक कराने और मंदिरों में पूजा-पाठ शुरू कराने की कोशिश करते रहे हैं. वह लंबे समय से खजुराहो में भगवान विष्णु की खंडित प्रतिमा को दोबारा स्थापित कराने के प्रयास कर रहें हैं. स्थानीय लोगों को जागरूक करने के लिए उन्होंने खजुराहो के वामन जवारी मंदिर के बाहर कई बार अनशन भी किया और धार्मिक अनुष्ठान भी किए. जीर्णोद्धार की मांग करते हुए जंतर-मंतर पर प्रदर्शन भी किया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन सौंपा, लेकिन मंत्रालय से कोई जवाब नहीं आया.

चीफ जस्टिस की यह टिप्पणी उस समय आई है जब कुछ ही दिन पहले उन्होंने और जस्टिस एजी मसीह ने वक्फ बोर्ड बिल से बिल को मज़बूती देने वाले महत्वपूर्ण बिंदुओं को निकालने का निर्देश दिया है. जिससे वक्फ बोर्ड द्वारा सताए और शोषित लोगों में गहरी निराशा छा गई है. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब चीफ जस्टिस गवई ने हिंदुओ की भावनाओं को चोट पहुंचाई हो. साल 2023 में स्वामी प्रसाद मोर्य ने रामचरितमानस पर अभद्र टिप्पणी की थी. जिसके बाद उनपर एफआईआर दर्ज कराई गई. मौर्य एफआईआर को रद्ध कराने के लिए हाईकोर्ट गए, जहां उनकी याचिका खारिज कर दी गई. 2024 में वह सुप्रीम कोर्ट गए. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिल संदीप मैहता ने उनके खिलाफ मुकदमें पर रोक लगा दी. पीठ ने सरकार से पूछा कि “आप इन चींजों को लेकर इतने संवेदनशील क्यों हैं. यह व्याख्या का विषय है, अपराध कैसे है.”

भारतीय पुरात्तव विभाग यानी (एएसएई) के काम को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट के जजों का दोहरा मापदंड देखने को मिलता है. जहां एक तरफ भारत के प्राचीनतम और सांस्कृतिक महत्व को संजोने वाले मंदिरों के जीर्णोंद्धार को लेकर दायर की जाने वाली याचिकाओं को हिंदुओं को बेज्जत करने वाली टिप्पणीयों के साथ खारिज कर दिया जाता है. वहीं अगस्त 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने ही एएसआई को दिल्ली के महरोली में स्थित 13वीं सदी की दो मजारों, आशिक अल्लाह दरगाह और बाबा फरीद की चिल्लागाह की मरम्मत कराने का आदेश दिया था. दोनों ही मजारें एएसआई द्वारा संरक्षित ईमारतों में नहीं आती हैं. कोर्ट ने यह आदेश अधिकारियों को दरगाह और अन्य ऐतिहासिक स्मार कों तोड़ने से रोकने की मांग करने वाली अपीलों पर सुनवाई करते हुए दिया. जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर. महादेवन की पीठ ने डीडीए से पूछा कि “आप इन निर्माणों के तोड़ना क्यों चाहते हो.”

इन दोंनों ही मामलों में अंतर है तो सिर्फ यह कि धार्मिक स्थल किस धर्म का है. एआसआई द्वारा संरक्षित ईमारत होने के बावजूद जवारी मंदिर पर एएसएई कई बार अनुरोध करने पर भी कुछ नहीं करती और न ही सुप्रीम कोर्ट याचिका की गंभीरता को समझ पाता है. वहीं दो मजारों को बचाने के लिए दिया गया कोर्ट को आदेश पक्षपातपूर्ण दिखाई देता है.

इस मामले पर हमने गवई की माफी के लिए पत्र लिखने वाले वकील विनीत जिंदल से बात की. जिंदल ने कहा. “यह बेहद साधारण सी याचिका थी जिसमें कोर्ट से 200 सालों से टूटी हुई भगवान विष्णु की मूर्ति को ठीक करने की गुहार लगाई गई थी. याचिकाकर्ता ने एएसआई से कई बार मूर्ति का पुनर्निर्माण कराने के लिए बात करने की कोशिश की लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया, इसलिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट के पास आना पड़ा.”    

जिंदल ने मामले पर कोर्ट की टिप्पणी को अनुचित, असंवेदनशील और अपमानजनक बताया. “देश की सर्वोच्च न्यायालय के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए व्यक्ति का इस तरह का कमेंट करना बहुत गलत है. यही बात अगर कोई आम आदमी बोलता तो उसके ऊपर अब तक 100 से ज्यादा एफआईआर दर्ज हो चुकी होती. जिस बड़े पद पर गवई बैठे हैं, उनको यह स्वीकार करना बेहद मुश्किल लगेगा कि उन्होंने कोई गलती की है.”

16 सितंबर को की गई टिप्पणी के बाद लोगों का आक्रोश देखने पर 18 सितंबर को गवई ने मामले पर सफाई देते हुए कोर्ट रूम में कहा कि वह सभी धर्मों में विश्वास रखते हैं, हर धर्म के पूजा स्थलों पर जाते हैं और सच्ची धर्मनिरपेक्षता में भरोसा रखते हैं.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गवई का पक्ष लेते हुए कहा, “मैं जस्टिस को 10 सालों से जानता हूं. वह हर धर्म के पूजा स्थल पर गए हैं.“ उन्होंने आगे कहा,  “सोशल मीडिया पर इसे जिस तरह दिखाया गया,  वह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है… हमने न्यूटन का नियम पढ़ा था, जिसके अनुसार हर क्रिया की एक समान प्रतिक्रिया होती है. अब, नया नियम यह है कि हर क्रिया की एक गलत और असंगत प्रतिक्रिया होती है.” वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने गवई पर नरमी दिखाते हुए सोशल मीडिया को “एक अनियंत्रित घोड़ा” कहा, जिसे वश में नहीं किया जा सकता.

जिंदल ने कपिल सिब्बल की बात को हैरान करनी वाली बताया और कहा, “कपिल सिब्बल ने सोशल मीडिया की तुलना एक अनियंत्रित घोड़ा से की है. आप सोशल मीडिया पर देश के प्रधानमंत्री को चोर कहते हैं तो हां यह बेलगाम तो है और उसे आप ही ने ऐसा बनाया है.”

दो दिन बाद आए सीजेआई के बयान पर पर जिंदल ने कहा, “उन्होंने अभी भी अपनी टिप्पणी पर माफी नहीं मांगी है. उन्होंने सिर्फ सफाई दी है. हमारा सनातन धर्म यही सिखाता है कि अगर आप बहुत बड़े पद पर हैं और आप अपनी गलती पर माफी मांगते हैं तो आप और बड़े होते हैं छोटे नहीं.”

जिंदल ने हमें समझाते हुए बताया कि सीजेआई के इस बयान का साधारण जनता कैसा प्रभाव पड़ेगा. लोग किस तरीके से उनके कहे शब्दों को मिस इंटरप्रेटे और मिसयूज करेंगे? आगे कितने ऐसे लोग होंगे जो आपके शब्दों का रेफरेंस देकर इसी तरीके की बातें सनातन के लिए और भगवान विष्णु के लिए करेंगे, उसका जिम्मेदार कौन होगा? जब इस तरीके के बयान सर्वोच्च न्यायालय से आएंगे तो निचली अदालतों के जजों पर क्या मैसेज जाएगा.

जिंदल ने कहा, “आप एक तरफ वक्फ बोर्ड की सुनवाई करते हुए कहते हैं कि कलेक्टर वक्फ बोर्ड के अंदर फैसले नहीं लेगा कि जमीन किसकी है. वह कलेक्टर जिसे हमारे देश की सरकार, देश के कानून, हमारे देश के कोर्ट कंपिटेंट अथॉरिटी मानता है, नहीं बताएगा जमीन किसकी है. क्या ऐसे फैसलों के पीछे हमारे सीजीआई का खुद का बिलीव है. यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है. और अगर वह यह कहते हैं कि मैं सभी धर्मों का सम्मान रूप से सम्मान करता हूं तो फिर उनको सामने आकर माफी मांगनी चाहिए.”

जिंदल के अनुसार देश का न्यायालय न्याय को लेकर दोहरे मापदंड अपना रहा है. और इस देश में हिंदू बहुसंख्यक होने की कीमत चुका रहा है. यही जब मायनौरिटी में आ जाएगा तब वह उसकी कीमत भी चुकाएगा.

बीते समय में इस तरह के कई उदाहरण हमें देखने को मिलें हैं जिनके आधार पर हम यह कह सकता हैं कि अगर इस तरह का बयान किसी अन्य कम्युनिटी को लेकर कुछ दिया जाता तो आसपास के सभी मुस्लिम देश भारत को कईं पत्र लिख चुके होते.

वहीं दूसरे धर्मों पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने पर सर तन से जुदा करने की बात करने वालों को छोड़कर जज पीड़ित व्यक्ति को ही कोर्टरूम के अंदर डांटते हैं और कहते हैं कि आपकी वजह से पूरे देश में आग लग गई. यह बेहद शर्मनाक है.

जिंदल ने भारत में वाम मोर्चे के बारे में बात करते हुए हमें बताया, “आपने देखा होगा लैफ्ट और मुस्लिम अपने किसी भी केस में सबसे बड़े और लाखों की फीस लेने वाले सबसे चर्चित वकीलों को खड़ा करते हैं. जब उत्तर प्रदेश में डिमोलिशन शुरू हुआ था तब बहुत सी अपीलें सुप्रीम कोर्ट में डालीं गईं. डिमोलिशन सुबह शुरू हुआ और शाम तक पेटीशन फाइल हो गई, पेटीशन लिस्ट हो गई और पेटीशन की सुनवाई भी उसी तारीख पर हो गई. ऐसा कैसे हुआ. लेफ्ट अब धीरे-धीरे बदल रहा है, सेंटर वाले लेफ्ट होते जा रहे हैं. लेफ्टिस्ट के बारे में जब हम बात करते हैं तो सिर्फ सीपीआईएम की बात नहीं करते. उन सभी लोगों की बात करते हैं जो हिंदू धर्म के खिलाफ हैं. अब लेफ्टिस्ट की परिभाषा अब बदल गई है.”

उन्होंने आगे कहा, “अगर आप यह सोचते हैं कि हिंदुओं के समर्थन में कोई आएगा तो वह तभी आएगा जब आप अपने लिए खड़ा होना शुरू करेंगे. अपना ऐसा इकोसिस्टम बनाएंगे, अपना फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन खड़ा करेंगे ताकि अगर आप शाम को पेटिशन फाइल करें, रात को उसकी सुनवाई हो सके. चाहे सुप्रीम कोर्ट खुलवाना ही पड़े. हमें बहुत मुश्किल से देखने को मिलता है कि कहीं इक्का-दुक्का मोकों पर हिंदू सड़कों पर आए हों, धरना, प्रदर्शन किया हो. विरोध जताने के लिए भी हिंदू बाहर नहीं आते. हमें कहीं ना कहीं एक एग्रेसिवनेस होने और एक साथ आवाज उठाने की जरूरत है.”

सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल औऱ अभिषेक मनु सिंघवी जैसे बड़े वकील जजों और उनकी निर्णय लेने की ताकत को कैसे प्रभावित करते है, यह बताते हुए जिंदल ने कहा, “सिस्टम में बड़े चेहरों को ज्यादा अटैंशन मिलती है. जितना बड़ा नाम होता है केस भी उतना वज़नदार हो जाता है. अगर कोई बड़ा चेहरा दलील दे रहा होता है तो जज उनको समय भी देते है औऱ उनकी बात को ज्यादा ध्यान से सुनते हैं. भगवान विष्णु की मूर्ति को लेकर की गई याचिका में भी यही समस्या थी कि कोई बड़ा चेहरा इसे कोर्ट में पेश नहीं कर रहा था. अगर ऐसा होता तो परिणाम शायद अलग होता.”