पूर्व सांसद राहुल गाँधी भारत की राजनीति में विपक्ष के नेता के रूप में कम और अपने बेतुके बयानों से ज़्यादा जाने जाते हैं । देश के अंदर तो उनके बयान लोगों को हास्यास्पद लगते ही हैं लेकिन विदेशी मंचो पर जब कभी भी वे बोलते हैं तो सरकार,भाजपा,संघ या मोदी की आलोचना करते करते वे कब देश की आलोचना करने लग जाते हैं इसका उन्हें एहसास ही नहीं होता । मसलन कुछ माह पूर्व जब वे लंदन गए तब उन्होंने देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के ख़त्म होने की बात कहकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया था । उनके इस बयान के बाद उन्हें चारों ओर से आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा था । राहुल गाँधी इन दिनों अमरीका यात्रा पर हैं । वो यहाँ अलग अलग कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं । इसी दौरान जब वाशिंगटन के नेशनल प्रेस क्लब में पत्रकारों के साथ उनके संवाद के दौरन उनसे केरल में काँग्रेस पार्टी के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन में रहने को लेकर एक सवाल पूछा गया तो उन्होंने त्वरित प्रक्रिया देते हुए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को सेक्युलर पार्टी बता दिया । उनके इस बयान के बाद से उन्हें ट्विटर और सोशल मीडिया पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है । सरकार में मंत्री किरण रिजिजू ने अपने ट्वीट में लिखा , “क्या जिन्नाह की मुस्लिम लीग एक सेक्युलर पार्टी है ? जो पार्टी धार्मिक आधार पर भारत विभाजन की दोषी है वो एक एक सेक्युलर पार्टी है ? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में कुछ लोग अभी भी मुस्लिम लीग का समर्थन करने वाले व्यक्ति को सेक्युलर मानते हैं !” (मूल ट्वीट अँग्रेजी में है) वहीं दूसरी ओर राहुल गाँधी का पक्ष लेते हुए काँग्रेस के प्रवक्ता पवन खेरा ने अपने ट्वीट में कहा कि जिन्ना की मुस्लिम लीग और केरल की मुस्लिम लीग में अंतर है । अब ये भी जान लेते हैं कि केरल की इस मुस्लिम लीग का इतिहास क्या है । ये कहा जाता है कि इंडियन मुस्लिम लीग की स्थापना वर्ष 1948 में मद्रास में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के भारतीय सदस्यों द्वारा की गई । एक नए नाम इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से एक नई पार्टी बनी जो की भारत के मुसलमानों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए गठित हुई थी । हालाँकि इस पार्टी का बस नाम अलग था किन्तु यह जिन्ना की मुस्लिम लीग की एक शाखा ही थी । केरला राज्य के गठन के बाद 1957 में हुए पहले विधानसभा चुनावों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई । हालाँकि जल्द ही इस सरकार के विरुद्ध मुस्लिम लीग, काँग्रेस और तब की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने एक गठबंधन किया और 1959 तक सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी सत्त्ता से बाहर हो गयी । आगामी 1960 के चुनावों में इस गठबंधन ने चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल की । तबसे लेकर आज तक अलग अलग गठबंधनों में रहकर मुस्लिम लीग के सदस्य न सिर्फ विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचे बल्कि केरल और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे । अभी फिलहाल मुस्लिम लीग के केरल में कुल पंद्रह विधायक हैं और देश की संसद में इनके कुल चार सदस्य हैं । 2019 के आम चुनावों से पहले जब राहुल गाँधी के लिए किसी सुरक्षित सीट की तलाश की जा रही थी तब काँग्रेस नेतृत्व को मुस्लिम बाहुल्य केरल की वायनाड सीट ही दिखी और मुस्लिम लीग के साथ मिलकर राहुल इस सीट से प्रचंड वोटों से जीतकर संसद पहुँचे हालाँकि अपनी पारिवारिक सीट माने जानेवाली अमेठी की सीट वह स्मृति ईरानी से हार गए । शायद यही वजह है कि राहुल गाँधी मुस्लिम लीग के प्रति इतने उदार भाव रखते हैं क्योंकि मुस्लिम लीग की कृपा न होती तो राहुल संभवतः 2019 में सांसद भी न बन पाते । हालाँकि राहुल गाँधी जितनी सरलता से मुस्लिम लीग को सेक्युलरिज्म का सर्टिफिकेट दे गए बात उतनी सरल है नहीं ।
अपनी वेबसाइट पर सेक्युलर राजनीति करने का दावा करने वाली इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का नाम समय समय पर हिन्दू विरोध के लिए लिया जाता रहा है । इसकी स्थापना के तुरंत बाद ही इसके अध्यक्ष बने मुहम्मद इस्माइल को भारत विभाजन की संकल्पना के एक अग्रणी पैरोकार के रूप में जाना जाता था । और सेक्युलर राजनीति की बात करने वाले इसी मुहम्मद इस्माईल ने संविधान सभा का सदस्य होते हुए भारतीय मुस्लिमों के लिए शरिया कानून को वैध बनाए रखने की मांग की थी । यही नहीं जिन्ना विरोध का समय समय पर श्रेय लेने वाली काँग्रेस पार्टी ने भी केरल बनने के बाद जिन्ना के ही अनुयायियों द्वारा बनाई गई इस पार्टी के साथ सत्ता के लिए गठबंधन किया था । केरल की इस मुस्लिम लीग का नाम समय समय पर हिन्दू विरोधी हिंसाओं में भी आता रहा है , मसलन 2003 के मराड़ हिन्दु नरसंहार में । 2 मई 2003 की रात को केरल के मराड़ बीच पर आराम कर रहे हिन्दू मछुवारों को शायद अंदाजा भी नहीं था कि मौत उनके इतने करीब थी । सैकड़ों की संख्या में हाथों में हथियार लिए आक्रांताओं ने इन हिन्दू मछुआरों पर हमला बोल दिया और कुछ ही मिनटों में चारों तरफ लाशें पसरी हुई थीं । इस जघन्य घटना ने सबको हिला कर रख दिया लेकिन हिन्दू विरोधी मीडिया ने पूरे मामले को दबा दिया । बाद में इस घटना की जांच के लिए बनी जस्टिस पी.जोसफ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक ये नरसंहार साफ साफ एक साम्प्रदयिक साजिश थी ,जिसमें मुस्लिम कट्टरपंथी और आंतकवादी शामिल थे । वर्षों तक इस मामले की जांच चलती रही और अन्तः 2017 में सीबीआई ने इस मामले में केरल की मुस्लिम लीग के नेताओं के नाम एफआईआर में शामिल किए । हाल के वर्षों में भी मुस्लिम लीग और उससे जुड़े लोगों के नाम हिंसक घटनाओं में आते रहे हैं । जैसे 2018 में मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं ने केरल के वटाकरा जिले में भाजपा कार्यालय पर हमला बोल दिया , वर्ष 2022 में केरल के कासरगोड से लापता एक डॉक्टर कुछ दिनों बाद मृत पाए गए , और ये तब हुआ जबकि कुछ दिन पूर्व उन्हें कुछ स्थानीय मुस्लिम लीग के नेताओं ने धमकियाँ दी थीं । और तो और 2021 में ऐसी खबर आई कि केरल के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने अपनी छात्र इकाई मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन की महिला इकाई को सिर्फ इसलिए भंग कर दिया क्योंकि इससे जुड़ी महिलाओं ने मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन के कुछ पुरुष नेताओं पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था ।
ये तो चंद उदाहरण हैं ऐसी कई घटनाएं गिनाई जा सकती हैं । अतः राहुल गाँधी जब अपनी सहयोगी मुस्लिम लीग को विदेशी धरती पर सेक्युलर घोषित करते हैं तो उन्हें एक बार सेकुलरिज्म अथवा धर्मनिरिपेक्षता की अपनी परिभाषा जाँच लेनी चाहिए ।