आप बस हिंदू के त्योहार, हिंदुओं द्वारा, व हिंदूओ के लिए ही होंगे, ये नियम बना ले। आप किसी भी दुश्मन को हरा देंगे।

देवबंद में, सउदी अरब में, अल अज़हर में शोध होते रहते है कि हिंदू बच कैसे गए चौदह सौ साल के बाद भी। उनके निष्कर्ष तो इलसाम के विरुद्ध नहीं हो सकते, लेकिन वास्तविकता आप को अवश्य जाननी चाहिए।
इलसाम की स्ट्रैटेजी रही है कि काफ़िर को अपने व्यापार पर निर्भर कर लो, व काफ़िर का व्यापार असम्भव बना दो। जैसे गुजराती कहते है कि दुश्मन को भिखारी बना दो, ताकि हाथ उठाए नहीं, फैलाए।
तो वही ट्रिक इलसाम उस सभ्यता के साथ क्यूँ नहीं कर पाया जो पाँच हज़ार साल से तो समुद्री व्यापार कर रही है?
हमारे पुरखे धर्म के लिए सब छोड़ सकते थे, लेकिन किसी भी अन्य वस्तु के लिए धर्म नहीं छोड़ सकते थे। (इस पर कभी विस्तार से लिखूँगा कि कैसे सब से बुद्धिमान व्यक्ति सदैव इसी निष्कर्ष पर पहुँचेगा कि धर्म ही जीवन है।) तो उन्होंने अपना सब छोड़ दिया धर्म के लिए। व्यापार छोड़ दिया, गाँव छोड़ दिए। पहाड़ों में चले गए, घने जंगलो में गाँव बसा लिया। केवल जीने योग्य पैदा करते। जीवन शैली बदल ली। हर घर आत्मनिर्भर हो गया। कदापि मोदी के इसी शब्द से चीन सबसे अधिक चौंका होगा। हम तो नहीं पढ़ते लेकिन उसने हमारा इतिहास अवश्य पढ़ा होगा।
तो आत्मनिर्भर होना अत्यंत सरल है: अभी गणेश उत्सव आएगा। बहुत सूँदर गणेश जी बनाते है हमारे हिंदू भाई, उन्ही से ले। रक्षाबंधन आएगा। बहन से कहे कि घर से ही धागा लेकर आए। जन्माष्टमी आएगी। हमने बचपन में सदैव देखा कि भगवान की मूर्ति सदैव घर पर ही बनती थी। आप घर पर न भी बना पाए तो पता करे कहाँ हमारे ही भाइयों द्वारा बनी मूर्ति मिल रही है। दिवाली पर वही से लेकर दिए भी जलाए। पतंग व माँझे के लिए अभी से खोज आरम्भ कर दे हिंदू व्यापारी की। होली पर भी पत्ता करे कि हिंदू भाइयों की बनाने से लेकर बेचने तक चैन कहाँ है, वही से ले। आप किसी हिंदू का त्योहार मनवाएँगे व किसी सैनिक की लड़ाई आसान करेंगे।
आप बस हिंदू के त्योहार, हिंदुओं द्वारा, व हिंदूओ के लिए ही होंगे, ये नियम बना ले। आप किसी भी दुश्मन को हरा देंगे।