सुनिये! अधर्म की शक्ति से भयभीत मत होइए, धर्म उसे केवल दूध पी कर भी मार देता है

उसने अपने स्तनों के ऊपर हलाहल विष पोत लिया था। अमृत के ऊपर विष का आवरण… दस दिन के बालक के साथ पहला छल हो रहा था।
क्या अद्भुत सौंदर्य धारण किया था पूतना ने! विषैले लोग सदैव अद्भुत सौंदर्य के स्वामी होते हैं। उसके रूप पर मुग्ध हुई यशोदा और रोहिणी ने उसे बालक के पास बेझिझक चले जाने दिया। वर्षों से कंस के अत्याचारों से पीड़ित होने के बाद भी उन्हें तनिक संदेह नहीं हुआ। सौंदर्य का प्रभाव बड़ा मारक होता है।
पर उस बालक को कोई क्या ही छलता! वह तो स्वयं सारे छलियों का छलिया था। वह दूध के ऊपर लगे विष को भी जानता था, और सुन्दर मुख के भीतर छिपे राक्षसी भाव को भी पहचानता था। उसे किसी का क्या भय, उसने दोनों भुजाएं उठाईं और हँसते हुए लपक पड़ा पूतना की ओर… माताएं विहँस उठीं।
पूतना माता बन कर आई थी, यह उसका सबसे बड़ा दोष था। ममता छल नहीं करती, वह तो ईश्वर का रूप होती है। ईश्वर मृत्यु को असँख्य रूपों में भेजता है, पर माता के रूप में नहीं भेजता। मृत्यु यदि माता के स्वरूप में आये तो यह स्वयं ईश्वर का अपमान है। सृष्टि का हर बालक जिस शक्ति पर भरोसा कर के अपना बचपन जीता है, उस शक्ति के प्रति अविश्वास का जन्म होना सभ्यता के लिए घातक है। कृष्ण कम से कम अपने सामने तो यह नहीं होने देते।
बालक ने पूतना के स्तनों को मुँह में लिया और पीना शुरू किया। पूतना की योजना तो यह थी कि बालक कुछ क्षण में ही मृत्यु को प्राप्त होता, पर ऐसा हुआ नहीं। वह दूध खींचता ही जा रहा था। पर कब तक? बालक के मुख में तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाहित था, उसकी क्षुधा मिटाने का सामर्थ्य उस क्षुद्र राक्षसी में कहाँ था? वह धीरे धीरे अशक्त होती गयी, निढाल हो गयी, और फिर पीड़ा से विचलित हो कर चीख पड़ी।
किसी व्यक्ति का मूल चरित्र जानना हो तो उसे क्रोध की अवस्था मे देखिये। व्यक्ति जब अत्यंत क्रोध में हो तो अपने मूल स्वरूप में आ ही जाता है। क्षण भर में ही पूतना का छद्म सौंदर्य लुप्त हो गया और क्रूर राक्षसी चेहरा उभर आया। बालक तो उसकी छाती से जैसे चिपक गया था, वह उसे लिए हुए ही आकाश में उड़ गई। चीखती, चिल्लाती, मरती हुई…
पल भर में समूचा गोकुल दौड़ पड़ा। ईश्वर के होने का विश्वास सामान्य मनुष्य को भी अत्यंत साहसी बना देता है। वरना कहाँ कंस की महाशक्तिशाली राक्षसी बहन और कहाँ गौवें चराने वाले सामान्य जन! पर सभी हाथ में लट्ठ लिए दौड़ पड़े थे…
पर उस बालक को किसी की आवश्यकता कहाँ थी? वह तो अकेले ही समस्त संसार को सुधारने आया था। कुछ ही पल में वह राक्षसी अंतिम बार चीखी और भूमि पर गिर पड़ी। बालक उसकी छाती से अब भी चिपका हुआ मुस्कुरा रहा था। जैसे माँ होने की उसकी लालसा को पूरा कर रहा हो।
यशोदा मैया दौड़ कर पहुँची और लाल को उठा लिया। भोले ग्वाल हर्ष से उछलने कूदने लगे। भीड़ के धक्के से पीछे होते गए नन्द बाबा ने मन ही मन कहा, “तू ईश्वर ही है! अब अत्याचार के दिन और नहीं! अब अधर्म के दिन अधिक नहीं…”
सुनिये! अधर्म की शक्ति से भयभीत मत होइए, धर्म उसे केवल दूध पी कर भी मार देता है।