कुत्ता कार के पीछे भोंकते हुए क्यूँ दौड़ता है?

कुत्ता कार के पीछे भोंकते हुए क्यूँ दौड़ता है?

एक बार मैं एक दुकान के बाहर खड़ा दुकान खुलने की प्रतीक्षा कर रहा था। सुबह का समय था तो सड़क लगभग सुनसान थी। एक कार तेज़ी से आयी व एक कुत्ते को टक्कर मारते हुए चली गयी। कुत्ता ज़ोर से चीखा। तभी में क्या देखता हूँ कि उस पूरी लोकैलिटी के कुत्ते, पंद्रह-बीस होंगे, दौड़ कर उस उसके पास पहुँच गए। तभी एक अन्य कार वहाँ से गुजरी। सारे कुत्ते भोंकते हुए उसके पीछे दौड़े।

उस दिन मैं समझा कि कुत्ता इसीलिए कार के पीछे भोंकते हुए दौड़ता है कि उसने किसी कार को किसी कुत्ते को कुचलते हुए देखा था।

माना जाता है कि स्वयं को सुरक्षित रखने की instinct, प्रवृत्ति, व अन्य जीवों के प्रति, विशेषतः अपनी species के प्रति, compassion व सिम्पथी genetic, आनुवंशिक होती है। कुत्तों में भी होती है। इसलिए सदैव आपस में लड़ने वाले कुत्ते किसी कुत्ते को extreme दुःख में देखते है तो दौड़ पड़ते है। कार उन्हें कुचलती है तो सारे कुत्ते हरेक कार को अपना दुश्मन मान लेते है।
आज एक मित्र का वर्तांत पढ़ा कि कैसे उनकी विधवा माता जी, जो एक सैनिक की पत्नी थी, की पारिवारिक पेन्शन आरम्भ करने के लिए बैंक ने उन्हें चार महीने खून के आंसू रुलाए। तो मुझे लगा कि हम लोगों ने compassion, sympathy की genetic instinct पर भी विजय प्राप्त कर ली है। अस्सी, नब्बे वर्ष की विधवा हो सामने तो क्या, रिश्वत तो देनी पड़ेगी। पोस्टमोर्टेम के बाद शव लेना हो तो भी रिश्वत लगती है। तो परिवार के सदस्य की मृत्यु का असीम दुःख झेल रहा परिवार शव माँग रहा है अंतिम संस्कार के लिए, तो क्या, रिश्वत तो लगेगी।

दार्शनिक कहते है कि बिना नैतिक मनुष्यों के सभ्य समाज असम्भव है। सभ्य समाज ही सम्पन्न होते है। विधवा से व मृत शरीर से रिश्वत माँगने के कारण ही हम इतने गरीब है। सम्पन्नता कामर्स से आती है व भ्रष्ट समाज में कामर्स असम्भव है।उद्योग व्यापार या तो आरम्भ ही नही होते, आरम्भ होते है तो सब लुटा कर बंद हो जाते है। क्यूँकि समाज भ्रष्ट है तो निजी उद्यम में भी जिसे जहां अवसर मिलता है डंडी मार लेता है।

भ्रष्ट के साथ साथ मूर्ख भी हो गए है। तो संपन्नता की इच्छा रखते हुए भी वोट भ्रष्ट, समाजवादी, राजनीतिक ख़ानदानो के देते है इस आशा में कि घोटाले कर नौकरी देगा, या मलाईदार पोस्ट देगा, या मुफ़्तखोरी कराएगा।

किसी वचन का पालन नही करना। जब कोई वचन पूरा ही नही करना है तो कुछ भी वचन दे देना। सामने वाला वचन को सच मानकर act करे व बर्बाद हो जाय तो हो जाय।

हमारी नैतिकता समाज का निर्माण करती है। जो स्तर हमारी व्यक्तिगत नैतिकता का है वही समाज का है। इसी समाज में हमारे बेटे बेटी को रहना होगा। तो जब हम वचन तोड़ रहे होते है तो जीवन हम अपने बेटे बेटी का नष्ट कर रहे होते है। जब रिश्वत ले रहे होते है तो जीवन अपने बेटे बेटी का नष्ट कर रहे होते है। ना उनके पास नौकरी होगी, न सुरक्षा होगी। कुत्ते तक compassion, व sympathy बचाए हुए है, हम तो अपने बच्चों के लिए भी खो चुके है।