मुझे आज तक किसी हरियल से बुरा अनुभव नहीं हुआ है । अच्छे मित्र भी हुआ करते थे, पुराने पड़ोसियों से संबंध आज भी अच्छे हैं – वे माइग्रेट हुए – याने कुल मिलकर किसी भी हरियल ने मेरी कोई भैंस नहीं खोल ली है ।
फिर भी मैं उस मत का विरोध क्यों करता हूँ ?
समझ में आए तो एक ही बात समझ लीजिये – कश्मीरी पंडितों के कश्मीरी मुसलमानों से संबंध मेरे सम्बन्धों से कई गुना अच्छे थे, पीढ़ियों से थे, सदियों से थे । फिर भी, वादी में कभी भी पाकिस्तानी फौज नहीं आई या आतंकवादी भी इतनी संख्या में नहीं आए जो कश्मीरी पंडित वहाँ से यूं खदेड़े गए, मारे गए, बर्बाद किए गए ।
उनके साथ यह घृणित और पीड़ादायक वर्तन वही लोगों ने किया जिनके साथ उनकी पीढ़ियों की दोस्ती थी, सदियों के संबंध थे । एक दूसरे के बच्चों को अपने बच्चों जैसे पाले थे।
लेकिन उनकी प्रेरणा का स्रोत आप कितना भी नकार लें, नकार नहीं सकते ।
वे आप के भी अच्छे मित्र होंगे । लेकिन ये जान लीजिये, कि शांति काल में फ़ौजियों की दुश्मन फौजियों से अच्छी दोस्ती हो सकती है। साथ बैठकर दारू पी सकते हैं, लेकिन दोनों को अपने कर्तव्य अच्छे से पता होते हैं । ब्यूगल बजते ही अपने नियत स्थान पर । और शस्त्र चलाते समय सामने जो है वो शत्रु ही है, भले ही दो दिन पहले बाड़े के तारों के दोनों तरफ से गप्पे लड़ाये हों ।
शत्रु को अपने इरादों से गाफिल रखना भी युद्ध में बहुत मायने रखता है । अगर आप समझते हैं कि आप का शत्रु क्या करेगा यह आप को पता है तो हो सकता है यही आप की आत्मघाती भूल हो। पैटर्न समझिए लेकिन हमेशा surprise के लिए चौकन्ने रहिए । जहां तक गाफिल रखने की बात है तो अगर आप यह समझें कि वो दोस्त है और आप का घर बचाने के लिए लड़ेगा तो आप उस के उस मत को ले कर गाफिल रहे, और आप को गाफिल रखने में हरियल , जो हमेशा उसके मत का सैनिक होता है, कामयाब रहा ।
उस मत को समझ लीजिये, हरियल को समझ जाएँगे । बाकी आत्मानं सततं रक्षेत् ।