जेरेमी लालरिनुंगा!

इस नए गोल्डन ब्वाय को आगे अभी बहुत कुछ प्राप्त करना है


जेरेमी लालरिनुंगा!

इस 19 वर्ष के लड़के को राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक वाले ऊंचे मंच पर देखना बहुत सुखद है। पिछले कुछ वर्षों में पूर्व-उत्तर के युवाओं ने बहुत तेजी से विश्वपटल पर अपनी जगह बनाई है। यह उत्तर-पूर्व के लिए ही नहीं, देश के लिए भी सन्तोष देने वाली खबर है।

मैडल लेते समय लड़के ने जिस जोश के साथ राष्ट्रगान गाया है, वह आनन्दित कर देने वाला है। ऐसा, कि जो देखे वह झूम उठे।

यह युवक उस सामाजिक वर्ग से आता है, जिसके धार्मिक इतिहास को ही मार दिया गया है। वे पहले मिज़ो जनजाति के थे, पर अब ईसाई हैं। हालांकि मिज़ो जनजाति के लोग धर्म परिवर्तन के बाद भी अपनी कुछ परम्पराओं को निभाते रहे हैं। आप शायद नहीं जानते हों, पर भारत के वन्य प्रदेशों में क्रोसिन की दो दो गोलियां दे कर लोगों से उनकी सभ्यता और संस्कृति लूटी गई है। अब उसी दलित वर्ग के बच्चों का विश्व पटल पर चमकना इस बात की गवाही है कि अच्छे दिन आये हैं। दिन बदले हैं, समय सुधरा है।

ब्रिटिश शासन के दिनों में अंग्रेजों ने मिजोरम के मिज़ो लोगों को बहिष्कृत घोषित किया था। उनके ऊपर हुए अत्याचारों की कथा बहुत लंबी है। पर आजादी बीसवीं सदी में वे ही अंग्रेज खुद को मिज़ो लोगों का हितैषी बताने लगे और उस भोली भाली जाति का सम्पूर्ण धर्म परिवर्तन करा लिया। यह कितना क्रूर है न? धार्मिक सहिष्णुता का ढोंग करने वाले सदैव ऐसे ही रहे हैं।

मैंने कहीं पढा, इस नवयुवक ने छह माह पहले ही अपनी मोबाइल की डीपी में कॉमनवेल्थ गोल्ड मैडल की तस्वीर लगाई थी। वह रोज उठ कर वही तस्वीर देखता, और उसे पाने की तैयारी में लग जाता। कल अपनी बारी आने पर चोटिल होने के बावजूद लड़के ने 165kg भार उठाने का प्रयास किया। यह उस लड़के का जुनून ही है जो आज वह गोल्ड मैडल उसके हाथ में है। वही अर्जुन और मछली की आँख वाली कथा! मनुष्य चाहे तो क्या नहीं पा सकता, मन को एकाग्र कर ले तो कौन सा लक्ष्य नहीं बेध सकता?

जेरेमी के पिता बॉक्सर थे, स्टेट लेबल पर खेलते थे और अच्छा खेलते थे। पर परिवार चलाने के लिए उन्होंने बॉक्सिंग छोड़ कर नौकरी कर ली। अभाव बहुतों के जीवन का रास्ता बदल देता है। संघर्ष जेरेमी के हिस्से भी कम नहीं रहा। उसने भी मजदूरी की है, उसने भी बोझा ढो कर पेट पाला है। मुझे लगता है कि उन्नीस वर्ष की आयु में आसमान छूने वाले जेरेमी के संघर्षों में उनके पिता का संघर्ष जुड़ जाता है। संघर्ष पिता ने प्रारम्भ किया था, फल पुत्र को प्राप्त हुआ। हर व्यक्ति की उपलब्धियों में थोड़ा-बहुत योगदान उसके पिता के संघर्षों का भी होता है।

इस नए गोल्डन ब्वाय को आगे अभी बहुत कुछ प्राप्त करना है। ढेरों शुभकामनाएं लड़के… जिन्दाबाद रहो।