हर तस्वीर के कई रङ्ग होते हैं। कानपुर देहात की घटना देखिये। सरकारी भूमि पर बसे उस दरिद्र ब्राह्मण कुटुंब के विरुद्ध समाज के प्रभावशाली लोगों ने बार बार प्रशासन से शिकायत की। किसी के अंदर उनके लिए दया नहीं थी।
पुलिस आयी। प्रशासन ने पहले उस झोपड़ी के आगे बना छोटा सा देवस्थान ढहाया। देव को ढहते देख उस दरिद्र ब्राह्मणी ने वही किया जो उन्हें करना चाहिये था। देव नहीं रहे तो सेविका क्यों रहे? घर में घुसी और द्वार बंद कर लिया।
आग किसने लगाई यह जाँच का विषय है, पर ईश्वर की उन दरिद्र सेविकाओं ने स्वयं का दाह कर लिया, यह अकाट्य सत्य है। इसी में उनकी प्रतिष्ठा थी, धर्म की प्रतिष्ठा थी। हजार वर्षों से युद्धक्षेत्र में खड़ी सभ्यता ऐसे ही बलिदानों के कारण जीवित है।
अब न्याय की बात करें तो मैं सरकार से न्याय नहीं मांग रहा। अपराध हो चुका, अब सत्ता अधिक से अधिक अपराधियों को दण्ड दे कर प्रायश्चित कर सकती है। जो जल मरे उनके साथ क्या ही न्याय करेगी सरकार? न्याय देव करेंगे, और जरूर करेंगे।
बत्तीस लोगों पर हत्या का मुकद्दमा दर्ज हुआ है। सरकार अपराधियों को क्या दण्ड देती है, यह मैं नहीं कह सकता, पर उन्हें दण्ड अवश्य मिलेगा। सत्ता दे या ईश्वर, वर्ष भर के भीतर उन्हें दण्ड मिल जाएगा, इसका विश्वास है मुझे। इस छोटी सी आयु में ही मैंने अनेक उदाहरण देखे हैं।
हाँ! आप यदि कुछ करना चाहते हैं तो तिरस्कार कीजिये गेंदनलाल दीक्षित जैसे उन नीच लोगों का, जो छोटी सी बात के कारण किसी दरिद्र के पीछे तबतक पड़े रहते हैं, जबतक कि उसका सबकुछ छीन नहीं लेते। हां, ये वही है जो उस दरिद्र परिवार के पीछे पड़ा हुआ था। थूक सकते हैं तो थुकिये ऐसों पर…
और यदि नहीं थूक सकते, ऐसे हरामखोरों का तिरस्कार नहीं कर सकते, तो मत रोइये! इस विलाप का कोई मूल्य नहीं…
