आपने नल के नीचे बालटी रखी, पानी भरने के लिए, लेकिन आप को तुरंत ज़रूरत है पानी की इसलिए आपने जैसे ही उसमें लोटे भर पानी हुआ, पानी निकाल लिया। हर बार ऐसे ही हुआ, जैसे ही लोटे भर पानी हुआ, आपने निकाल लिया। तो आपकी बालटी ख़ाली ही रही। लेकिन अगर लोटे भर पानी होने पर आप केवल तीन चौथाई लोटा ही निकाले, तो धीरे धीरे आपकी बालटी भर जाएगी। फिर आप पूरा लोटा भरते रहे, तब भी आपके पास एक पुरी बालटी पानी रिज़र्व में रहेगा। कभी आपको ज़्यादा ज़रूरत पड़ जाए, या नल में पानी कम हो जाए थोड़ी देर के लिए, तो भी आपको अपने पानी की खपत कम करने की आवश्यकता नहीं है।
इसके विपरीत ऐसा भी हो सकता है कि आप अपने नल का पानी तो बालटी ख़ाली रहते भी पूरा इस्तेमाल करे ही, पड़ोसी से भी उसकी बालटी से पानी माँग कर प्रयोग करे कि जब आपके नल में पानी ज़्यादा हो जाएगा तो आप लौटा देंगे, या भविष्य में बचा कर दे देंगे। यानी आप क़र्ज़दार हो गए।
जीवन की भी बस इतनी सी कहानी है।
अगर आप पूरी आय ख़र्च कर रहे है तो कभी विपत्ति आने पर आप क़र्ज़दार हो जाएँगे। अगर आप आय में से थोड़ा बचाते रहे है तो कभी अचानक ज़्यादा ख़र्च हो जाने पर भी आप क़र्ज़दार नहीं होंगे।
लेकिन अगर आप आय से ज़्यादा ही ख़र्च कर रहे है तो आप के ऊपर क़र्ज़ का पहाड़ बन जाएगा। और अंतत आप बर्बाद हो जाएँगे।
आपकी आय आपकी वास्तविक दुनिया है। जब आप आय से ज़्यादा ख़र्च करते है तो आप एक नकली दुनिया, एक काल्पनिक दुनिया, का निर्माण करते है, जिसे एक दिन वास्तविकता के ठोस धरातल से टकराकर चूर होना ही होता है।
जीवन बहुत मुश्किल नहीं है। सारी मुश्किलें हमारी इस आदत से आती है कि हम अपनी आय की वास्तविकता को स्वीकार करने को तैयार नहीं होते।
आप review करे तो आप पाएँगे कि आवश्यक ख़र्चे आपकी आय से बहुत ही कम है। पहले उन तक अपने व्यय को सीमित करे। फिर आय में से उतने अनावश्यक ख़र्चे करे जिनके बावजूद बचत होती रहे।
भ्रष्टाचार होता है जब आप पड़ोसी के नल से, या कहे कि सरकारी/सार्वजनिक नल में, चोरी से एक पाइप डाल ले, और जो अतिरिक्त पानी मिल रहा है उस से कई बालटीया भी भर कर रख ले, और ख़ूब पानी भी ख़र्च करे।
ये हम सभी के लिए मौक़ा है, गहरी साँस लेने का, और ज़ोर से स्वयं से पूछने का: what was the point?
किसी को impress करने के लिए, कुछ भी करने के लिए, हम कभी अपनी आय से अधिक ख़र्च ना करे। आय से ज़्यादा ख़र्च करना एक नक़ली दुनिया बनाना है जो कभी तो ढह ही जाएगी, स्वयं से व दूसरों से झूठ बोलना है जो कभी तो सामने आ ही जाएगा।
और हाँ, बालटीया भरने का इतना भी शौक़ ना पाले की बालटीया भरते रह जाए और एक दिन जीवन की बालटी ही औंधी हो जाए।
लेकिन बच्चों को भरी बालटी देकर जाए, ख़ाली नहीं, और ये तो कभी भी ना करे कि पड़ोसी आकर कहे कि कुछ पानी उसका भी लौटाना है।